मैं ही था जो खड़ा मंथन में हलाहल पी रहा।वो मैं ही था जो इस संसार को भी जी रहा। हर कण में मैं ही व्याप्त हूं।हर शंख का उद्घोष मैं। हर समय की धार में,हर काल का मैं पार्थ हूं। मैं ही वो अर्जुन रण में था,और मैं ही कर्ण धीरवीर हूं। पेड़ की […]कर्म
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