चलिए आज बादल की बात करते है,
ऊपर से झुलस चुके उस बादल की,
जो जमीन को झुलसता देख रोता है।
गर सोच रहे हो तुम, क्या बादल रोता है?
तो चींख भी सुनी होगी तुमने कभी-कभी,
जो धरती को गले लगा, उसको फिर से भिगोता है।
उस वक़्त ऐसा लगता है कि, हा बादल रोता है।
पर वो भी सहे तो अखिर किस हद तक,
कभी किसी रोज युही रो-रो कर, जब थक जाता है,
तब भले ही वो टूट जाए मगर,
भूमि को जरुर भिगोता है।
अब तुम भी सोचो जरा, क्या बादल रोता है?
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